भारत में कुम्हार समाज के कई गौत्र प्रचलित है। जो अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार अलग – अलग है। कुम्हार प्रजापति समाज देश के सभी राज्यों में निवास करने वाली जाति है। सभी राज्यों की अलग -अलग भाषायें है तथा अलग-अलग रिति रिवाज है। जिसके चलते वहाँ के लोगों के रहन-सहन तथा आचार-विचार अलग है। इसका असर कुम्हार समाज के गौत्रों पर भी देखने को मिलता है।
गौत्र क्या होते है? What is Gotra?
गौत्र प्रत्येक समाज का महत्वपूर्ण बिन्दू है। एक ही पिता से उत्पन्न होने वाली संतान सगौत्र या गोती भाई कहलाते है। जिनके आपस में शादी विवाह जैसे संस्कार नहीं होते। प्राचीन काल में ही समाज के बुद्धिजीवी लोगों ने समाज को कई गौत्रों में विभाजित कर दिया। जिससे शादी विवाह आदि में किसी प्रकार की परेशानी ना हो। क्योंकि समान गौत्र के लोगों में आपस में शादी करने से कई प्रकार की आनुवंशिक विसंगतियाँ उत्पन्न होती है। इनसे बचने के लिए समाज को कई गौत्रों में विभाजित कर दिया गया। वे ही गौत्र भी चले आ रहे है। शादी संबंधों में इन गौत्रों को विशेष महत्व दिया जाता है।
गौत्र कैसे बने ?
गौत्रों का निर्माण समाज के संत महात्माओं तथा विद्धानों के द्वारा किया गया। उन्होंने प्रत्येक गौत्र को एक नाम दे दिया। जिससे उसे पहचानने में आसानी हो। जैसे – गढ़वाल, गमेरिया, अजमेरा, रेड़वाल, रेड़ीवाल, ईणिया, याणियाँ आदि।
राजस्थान में प्रचलित गोत्रों की सूची :-
राजस्थान में प्रजापति समाज में प्रचलित प्रमुख गौत्रों की सूची नीचे दी जा रही है।
जलांधरा, गेदर, खटोड, टांक, बोबरिया, मानधन्या, सिवोटा, लिम्बीवाल, छापरवाल, आसींवाल, मंगरोला, घोड़ेला, आइण्या, सांगर, कपूरपुरा, लिम्बा, साड़ीवाल, गढ़वाल, दादरवाल, नोकवाल, कारगवाल, गोटवाल, जगरवाल, कूकडवाल, ऊंटवाल, नांदीवाल, सींगरवाल, मोचीवाल, लोदवाल, मोरवाल, मानवाल, कांकरवाल, गोयल, सूनारिया, खरांटिया, रेणिया, सुरजाणिया, ओडिया, जोहरिया, बालूदिया, कवाड़िया, कमाड़िया, हरकिया, साणेचा, हाटवा, दूरार, खराटिया, मावरिया, असवारिया, मेवाड़ा, परमार, मंडावरा, नगरिया, बटाणिया, गोला, मंगलिया, चांदोरा, हाकेणिया, बिलपानिया, बोरावड़, रेणवाल, सोतवाल, भरवाल, आदिवाल, नरानिया, टांईवाल आदि है।
हाडौती के अधिकांश क्षेत्रों में प्रचलित गौत्र का विवरण इस प्रकार है
- इणिया, याणिया, एणिया
- रेडिवाल, रेडवाल
- गढ़वाल, गरवाल
- बेहरा, बहिरा, बहरा
- मोरवाल
- थापलिया
- मिनिया
- जगरवाल