आधा किलो आटा
एक दिन एक सेठ जी को अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई।लेखाधिकारी को तुरन्त बुलवाया गया।। सेठ जी ने आदेश दिया, “मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, यह कार्य अधिकतम एक सप्ताह में हो जाना चाहिए।
ठीक एक सप्ताह बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ जी की सेवा में उपस्थित हुआ।सेठ जी ने पूछा- “कुल कितनी सम्पदा है ?”
“सेठ जी, मोटे तौर पर कहूँ तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ किए धरे आनन्द से भोग सके इतनी सम्पदा है आपकी।” बोला लेखाधिकारी
लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ जी चिंता में डूब गए, ‘तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी ?’
वह रात दिन चिंता में रहने लगे। तनाव ग्रस्त रहते, भूख भाग चुकी थी, कुछ ही दिनों में कृशकाय हो गए। सेठानी जी द्वारा बार बार तनाव का कारण पूछने पर भी जवाब नहीं देते
सेठानी जी से सेठ जी की यह हालत देखी नहीं जा रही थी।
मन की स्थिरता व शान्त्ति का वास्ता देकर सेठानी ने सेठ जी को साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित कर ही लिया। सेठ जी भी पँहुच गए एक सुप्रसिद्ध संत समागम में।
एकांत में सेठ जी ने सन्त महात्मा से मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा।
महाराज जी! मेरे दुःख का तो पार ही नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखी मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान, विधी आदि करने को तैयार हूँ।” सेठ जी ने सन्त महात्मा से प्रार्थना की।
संत महात्मा जी ने समस्या समझी और बोले-इसका तो हल तो बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो, सेठ! बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है, एक दम कंगाल और विपन्न। न कोई कमानेवाला है और न वह कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। यदि वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा कि तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। तुम्हें अवश्य अपना वांछित प्राप्त होगा।”
सेठ जी को बड़ा आसान उपाय मिल गया। उन्हें अब कहां सब्र था। घर पहुंच कर सेवक के साथ एक क्विंटल आटा लेकर पहुँच गए बुढिया की झोंपड़ी पर।
माताजी! मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए।”सेठ जी बोले आटा तो मेरे पास है,बेटा! मुझे नहीं चाहिए।”
बुढ़िया ने स्पष्ट इन्कार कर दिया।सेठ जी ने कहा- “फिर भी रख लीजिए।
बूढ़ी मां ने कहा- “क्या करूंगी रख कर मुझे आवश्यकता ही नहीं है।”
सेठ जी बोले, “अच्छा, कोई बात नहीं,एक क्विंटल न सही यह आधा किलो तो रख लीजिए”।
बेटा! आज खाने के लिए जरूरी,आधा किलो आटा पहले से ही मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त की जरूरत नहीं है।” बुढ़िया ने फिर स्पष्ट मना कर दिया,लेकिन सेठ जी को तो सन्त महात्मा जी का बताया उपाय हर हाल में पूरा करना था
एक कोशिश और करते सेठ जी बोले “तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए।”
बूढ़ी माँ ने कहा- “बेटा! कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता आया है कल के लिए भी कल ही प्रबंध हो जाएगा।इस बार भी बूढ़ी माँ ने लेने से साफ इन्कार कर दिया।
सेठ जी की आँखें खुल चुकी थी,”एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है।”वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है।
बुद्धि विक्रय केंद्र
कुम्भ मेले में एक स्टाल लगा था जिस पर लिखा था, बुद्धि विक्रय केंद्र ” !
लोगो की भीड उस स्टाल पर लगी थी !
मै भी पहुंचा तो देखा कि उस स्टाल पर अलग अलग शीशे के जार में कुछ रखा हुआ था !
एक जार पर लिखा था-
कुम्हारों की बुद्धि- 100 रुपये किलो
दूसरे जार पर लिखा था –
गुर्जरों की बुद्धि- 1000 रुपये किलो
तीसरे जार पर लिखा था-
दलितों की बुद्धि- 2000 रुपये किलो
चौथे जार पर लिखा था-
बनिया की बुद्धि- 50000 रुपये किलो
मैं हैरान कि इस दुष्ट नें कुम्हार की बुद्धि की इतनी कम कीमत क्यों लगाई?
गुस्सा भी आया कि इसकी इतनी मजाल, अभी मजा चखाता हूँ।
गुस्से से लाल मै भीड को चीरते हुआ..दुकानदार के पास पहुंचा और उससे पूछा कि तेरी हिम्मत कैसे हुयी कुम्हार की बुद्धि इतनी सस्ती बेचने की ?
उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कराया और बोला श्री मान जी बाजार के नियमानुसार…
जो चीज ज्यादा उत्पादित होती है । आपस में ही टकराती है । उसका किमत गिर जाता है !
आप लोगों की इसी बहुतायत बुद्धि के कारण ही तो आप लोग दीनहीन हाल में पड़े हैं !
राजनीति में कोई पूछने वाला भी नहीं है आप लोगों को..
स्वर्णिम इतिहास होने के बावजूद भी आप विकास की धारा से हट चुके है…
सब एक दूसरे की टांग खींचते हैं
और सिर्फ अपना नाम बडा देखना चाहते हैं…
किसी को सहयोग नहीं करते…
काम करने वाले की आलोचना करते है…
और नीचा दिखाते हैं…!
अगर आपके पास पैसा आ जाये तो रिश्तेदार से सम्बंध तोड लेते हो
आज हर जाति में एकता देखने को मिलती है सिर्फ कुम्हार को छोड़कर…!
जाइये साहब…पहले अपनी समाज को समझाइये और लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास किजिए,,,!
और फिर आइयेगा मेरे पास… तो आप जिस किमत में कहेंगे, उस किमत में आप लोगों की बुद्धि बेचूंगा..!
मेरी जुबान पर ताला लग गया और मैं अपना सा मुंह लेकर चला आया !
इस छोटी सी कहानी के माध्यम से जो कुछ मैं कहना चाहता हूं,
आशा करता हूँ कि समझने वाले
समझ गये होंगे !
और जो ना समझना चाहे
वो अपने आपको बहुत बडा खिलाडी समझ सकते हैं..!