चाक पूजन | Chak Pujan

चाक पूजन यानि की चाक (कुम्हार के बर्तन बनाने का पारम्परिक उपकरण) की पूजा की जाती है उसे चाक पूजन कहा जाता है। वर्तमान में सामान्यत: दो बार चाक की पूजा करने का प्रचलन देखने को मिलता है।

पहला प्रचलन यह है कि दीपावली के बाद देव उठनी एकादशी को प्रजापति समाज के लोगों के द्वारा अपने अपने घरों पर चाक की पूजा की जाती है। जिसमें चाक को भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र मानकर उसकी पूजा की जाती है। पूजा के साथ-साथ उसकी प्रदक्षणा भी की जाती है।

वहीं दूसरा प्रचलन शादी विवाह के समय चाक की पूजा करने का है। जिसमें शादी वाले घर की महिलाऐं कुम्हार के घर पर जाकर चाक पूजा अर्चना करती है।

शादी में चाक का पूजन क्यों किया जाता है?

चाक पूजन विवाह समारोह में निभाई जाने वाली रस्मों का ही एक हिस्सा है जिसमें शादी वाले घर की महिलाएं एक तरह से कुम्हार के घर जाकर चाक (कुम्हार के बर्तन बनाने का पारम्परिक उपकरण) की पूजा अर्चना करती है। चाक पूजन के पीछे यह भी मान्यता है कि कुम्हार का चाक भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र है। और शादी ब्याह के घर वाले की महिलायें चाक की पूजा कर उनसे शादी का कार्यक्रम निर्विघ्न पूर्ण करने की प्रार्थना करती है। जिसमें मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदायें जैसे बारिश आना, आंधी तुफान आना, मौसम घराब होना भी शामिल है।

चाक पूजन के पीछे क्या – क्या है मान्यताएँ?

भारतीय परिवारों में शादी ब्याह को लेकर जो रंग Family और घरवालों पर देखने को मिलता है उतना किसी भी देश में नहीं होता और इसके कुछ धार्मिक कारण (reasons) भी है और साथ ही चूँकि marriage को  पवित्र और जन्मो जन्म का रिश्ता समझा जाता है और ऐसा समझा जाता है कि इन्सान को शादी केवल एक ही बार करनी होती है जीवन में तो क्यों ना उस मौके को खास बनाया दिया जाये।

इसलिए दूल्हा दुल्हन को जितना इस दिन का इन्तजार होता है उतना ही चाव रिश्तेदारों और अपनों को भी होता है तो ऐसे में बहुत सारी ऐसी रस्मे भी होती है जिनके बारे में आमतौर पर हमे जानकारी नहीं होती है उनमे से एक है – चाक पूजन (Chak pujan) | 

चाक पूजन के बारे में जानिए / Chak pujan in Hindi

marriage में चाक पूजन (Chak pujan) की रस्म का पारम्परिक और स्थानीय दृष्टि से बड़ा महत्त्व होता है और इसे एक खास रस्म माना जाता है  और धार्मिक नजरिये से देखें तो कुम्हार के चाक को ब्रह्मा सृष्टिचक्र भी माना जाता है क्योंकि ऐसा होता है कि जैसे कुम्हार अपने चाक के उपर मिटटी को शकल देता है बर्तन की और अन्य साधनों की उसी तरह चाक को भी नवीनता का प्रतीक माना जाता है | कलश को पूरे विश्व का प्रतीक भी माना जाता है |

कलश को इसलिए पवित्र माना जाता है क्योंकि पुराने समय में जब स्टील या लोहे के बर्तन नहीं होते तो लोग मिटटी के बर्तनों में ही खाने पीने की चीज़े और अन्य सामग्री रखा करते थे इसलिए आज भी उनका उतना ही महत्व है भले ही लोग कितना भी आधुनिक क्यों ना हो गये हो लेकिन संस्कार आज भी वन्ही है और संस्कृति भी।

किस प्रकार की जाती है चाक की पूजा?

चाक पूजन में घर की पांच ,सात या ग्यारह महिलाएं गीत गाती हुई कुम्हार (प्रजापति) के यंहा जाती है  और वंहा विधि विधान से पूजा करती है और थोडा local culture के अनुसार गीत संगीत भी होता है | पूजा पूरी हो जाने के बाद वो कुम्हार दम्पति को विधि अनुसार दक्षिणा और वस्त्र भेंट करती है और कलश लेकर आती है और वही कलश को गणेशजी के सामने रखा जाता है इसके पीछे विवाह संबधी धार्मिक मान्यता यही है कि चाक पूजन के बाद घर में धन धन्य की कमी नहीं होती है और सारा कार्य सकुशल होता है हालाँकि यह केवल धार्मिक पहलु ही है और हो सकता है बहुत सारे लोग इस से सहमत नहीं हो लेकिन जन्हा खुशियों की बात होती है हर कोई जो अपने पुरखों से उसने सीखा है देखा है और आज भी इसी मान्यता को निभाया जा रहा है।

किन-किन राज्यों में होती है चाक पूजा ?

चाक पूजा पूरे देश में प्रचलित है। चाक पूजा हिन्दु रिति रिवाजों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। और शादी ब्याह में चाक पूजन को लेकर कई प्रकार की मान्यताएँ है। इसलिए यह देश के सभी राज्यों में प्रचलित है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश सहित सभी राज्यों में चाक पूजा की जाती है। हाँ, पूजा की विधि एवं प्रकार अलग-अलग हो सकते है।