मिट्‌टी के बर्तनो में खाना पकाने से मिट सकता है बाल कुपोषण

धातु के बर्तनों के किफायती विकल्प होने के साथ साथ सहेजते है पोषक तत्व

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प्रजापति मंथन : जयपुर। मिट्‌टी का सही जगह उपयोग किया जाए तो उसमें इतनी ताकत है कि वह बाल कुपोषण भी मिटा सकती है। एक शोध में दावा किया गया है कि मिट्‌टी में वह सारे पोषक तत्व है जो बेहतर स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते है।

राजस्थान के जयपुर में अम्रत माटी इंडिया ट्रस्ट ने अपने शोध में यह दावा किया है शोध के अनुसार कुपोषित बच्चो को मिट्‌टी के बर्तनो में भोजन पकाकर दिया जाए तो पोषण की मात्रा कई गुना तक बढ़ जाती है। यहीं नहीं, शहरी महिलाओं में एनीमिक समस्या और मिनरल डेफिसिएंसी को भी ऐसे पके भोजन से संतुलित किया जा सकता है।

ट्रस्ट का दावा है कि उन्होने एनएबीएल सर्टिफाइड लैब से जांच करवा कर साबित किया है कि मिट्‌टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोषण अधिक मात्रा में मिलता है। ऐसे में भोजन को मिट्‌टी के बर्तनो में पका कर दिया जाए तो परिणाम अधिक तेजी से और अच्छे आएंगें। मिट्‌टी के बर्तन क्षारीय प्रकृति के होते है, जिसके चलते ये भोजन की अम्लीय प्रकृति को बेअसर करते है। पीएच संतुलन बनाए रखते है और भोजन को पचाना आसान बनाते है स्वाद बढ़ाने के अलावा मिट्‌टी के बर्तन भोजन में खनिज भी बढ़ाते है।


केवल 54.9 प्रतिशत शिशुओं को विशेष रूप से स्तनपान कराया जाता है और केवल 41.6 प्रतिशत शिशुओं को जन्म के पहले घन्टे में स्तनपान कराया जाता है। भारत में 5 साल से कम उम्र के 30.9 प्रतिशत से अधिक बच्चे सामान्य से कम कद के है। 6 महिने की उम्र के 70 प्रतिशत बच्चे एनीमिक है। भारत के 5 साल से कम उम्र के 35.7 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है।


कुपोषण को नियंत्रित करने के लिए भोजन अन्य बर्तनो के स्थान पर नियमित रूप से मिट्‌टी के बर्तनो में दिया जाए। आंगनबाड़ी जैसे केंद्रो से शुरूआत हो । पीने का पानी या दूध, दही, छाछ आदि मिट्‌टी के बर्तनो में ही तैयार करें। करीब 6 माह तक नियमित मिट्‌टी के बर्तनो का उपयोग हो । स्वास्थ्य विभाग बच्चो कि नियमित जांच करें। नतीजे अच्छे आने पर इसे बड़े पैमाने पर लागु करे।